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"घबरा कर / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर

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वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था  
 
वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था  
  

19:02, 24 जून 2009 का अवतरण

वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था

लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।


ज़्यादातर कुत्ते

पागल नहीं होते

न ज़्यादातर जानवर

हमलावर

ज़्यादातर आदमी

डाकू नहीं होते

न ज़्यादातर जेबों में चाकू


ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में

लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।


मैंने जिसे पागल समझ कर

दुतकार दिया था

वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था

जिसने उसे प्यार दिया था।