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"नयी-नयी आँखें / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है<br>
 
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है<br>
 
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।<br><br>
 
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।<br><br>

19:04, 24 जून 2009 का अवतरण

नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।

मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।

मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।

चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।

हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।