भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आवरण कथा / राजुल मेहरोत्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजुल मेहरोत्रा }} <poem> कुछ बेहिसाब नंगी सच्चाईया...)
 
 
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
रक्त सने हाथोँ मे कुछ सन्धिपत्र जैसा
 
रक्त सने हाथोँ मे कुछ सन्धिपत्र जैसा
 
आश्वासनो का हल्ला हो गया गगन मे
 
आश्वासनो का हल्ला हो गया गगन मे
टाकेँगे चाँद तारे हर एक के क़फ़न मे
+
टाकेँगे चांद तारे हर एक के क़फ़न मे
 
सत्ता सजा रही है बाज़ार क्रांतियोँ का
 
सत्ता सजा रही है बाज़ार क्रांतियोँ का
 +
वर्तमान पुस्तक की यह आवरण कथा है।
  
 
(रचनाकाल : )
 
 
</Poem>
 
</Poem>

09:18, 30 जून 2009 के समय का अवतरण

कुछ बेहिसाब नंगी सच्चाईयाँ खड़ी हैँ
किसको करेँ मना हम यह आम रास्ता है।
बाग़ी जुलूस को हम कब तक रहेँ सम्हाले
दम तोडते दिये को किसके करेँ हवाले
अस्तित्व को चुनौती हैँ दे रहे अन्धेरे
सूरज सिसक रहा है बादल तमाम घेरे
कदम कदम पे बिजली का मिल रहा समर्थन
ढहतीँ हैँ झोपड़ी ही यह बात अन्यथा है।
बलिदान के लहू से भूगोल पट गया है
इतिहास से शहीदों का नाम कट गया है
बस्तियाँ ज़लालत की आबाद हो गई हैँ
अच्छाइयाँ समय की सुकरात हो गई हैँ
हैँ बार बार सुनते फिर कोइ बुद्ध जन्मा
अनगिन दिये जले पर उजियार लापता है।
शँका सुलग रही है फिर समाधान कैसा
रक्त सने हाथोँ मे कुछ सन्धिपत्र जैसा
आश्वासनो का हल्ला हो गया गगन मे
टाकेँगे चांद तारे हर एक के क़फ़न मे
सत्ता सजा रही है बाज़ार क्रांतियोँ का
वर्तमान पुस्तक की यह आवरण कथा है।