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"कुछ और अशआर / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर

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तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त।
 
तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त।
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ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥
 
ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥
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आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़।
 
आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़।
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जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥
 
जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥
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रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़।
 
रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़।
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फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥
 
फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥
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मज़ाक़े-तल्ख़पसन्दी न पूछ, उस दिल का--
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बगै़र मर्ग जिसे ज़ीस्त का मज़ा न मिला॥
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मेरी हयात है महरूमे-मुद्दआ़-ए-हयात।
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वो रहगुज़र हूँ जिसे कोई नक़्शेपा न मिला॥

16:14, 6 जुलाई 2009 का अवतरण

तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त।

ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥


आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़।

जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥


रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़।

फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥


मज़ाक़े-तल्ख़पसन्दी न पूछ, उस दिल का--

बगै़र मर्ग जिसे ज़ीस्त का मज़ा न मिला॥


मेरी हयात है महरूमे-मुद्दआ़-ए-हयात।

वो रहगुज़र हूँ जिसे कोई नक़्शेपा न मिला॥