भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिमाद्रि तुंग शृंग से / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (समुज्ज्वाला की जगह समुज्ज्वला है और पथ की जगह पंथ है)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
प्रबुद्ध शुद्ध भारती  
 
प्रबुद्ध शुद्ध भारती  
  
स्वयंप्रभा समुज्ज्वाला
+
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला
  
 
स्वतंत्रता पुकारती  
 
स्वतंत्रता पुकारती  
  
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ- प्रतिज्ञ सोच लो,  
+
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,  
  
 
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'  
 
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'  
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
रुको न शूर साहसी !  
 
रुको न शूर साहसी !  
  
अराति सैन्य सिंधु में ,सुबाड़वाग्नि से चलो,  
+
अराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि से चलो,  
  
 
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !
 
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !

18:17, 10 जुलाई 2009 का अवतरण

हिमाद्रि तुंग शृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयंप्रभा समुज्ज्वला

स्वतंत्रता पुकारती

'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'


असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ

विकीर्ण दिव्य दाह-सी

सपूत मातृभूमि के-

रुको न शूर साहसी !

अराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि से चलो,

प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !