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पत्थर की दीवार=========<ref></ref>
क्या कहूँ भयानक है
या हसीं है यह मंज़र
फिर भी एक ख़ामोशी
रूहो-दिल की तनहाई
इक तवील <ref>लम्बा</ref>सन्नाटा
जैसे साँप लहराये
माहो-साल आते हैं
चीख़ती हुई घडि़याँ
ज़ख्म-ख़ुर्दा ताइर१ ताइर<ref>घाव खाया हुआ पक्षी</ref> हैंनर्मरौ२ सबुक३ लमहे४<ref>मन्दगति</ref> सबुक<ref>द्रुतगति</ref> लमहे<ref>क्षण</ref>४
मुंजमिद सितारे हैं
रेंगती हैं तारीख़ें
नक़्शे-पा नहीं मिलते
ज़िन्दगी के गुलदस्ते
ज़ेबे-ताके़-निस्याँ हैं५<ref>विस्मृति के आले में सजे हुए हैं</ref>हैं
पत्तियों की पलकों पर
बारिकों की तामीरें
अज़दहों <ref>अजगरों </ref>के पैकर६ पैकर<ref>शरीर</ref> हैंजो नये असीरों७ असीरों<ref>क़ैदियों</ref> को
रात-दिन निगलते हैं
उनके पेट की दोज़ख़
नींम-जान क़दमों में
बेड़ियों की शहनाई
हथकड़ी के हल्कों८ हल्कों<ref>गोलाइयाँ</ref> में
हाथ कसमसाते हैं
फाँसियों के फन्दों में
सूलियों के साये में
इन्क़िलाब पलता है
तीरगी१० तीरगी<ref>अँधेरे</ref>१० के काँटों पर
आफ़ताब चलता है
पत्थरों के सीने से
रात के अँधेरे में
जैसे शम्अ़ जलती है
उँगलियाँ फ़ुरोज़ाँ फिरोज़ाँ हैं
बारिकों के कोनों से
साजिशें निकलती हैं
ख़ून की लकीरें हैं
अश्क आग के क़तरे
साँस तुन्द१२ तुन्द<ref>प्रचण्ड</ref> आँधी है
बात है कि तूफ़ाँ है
अबरुओं की जुम्बिश में
अ़ज़्म१३ अ़ज़्म<ref>संकल्प</ref>मुस्कराते हैं
और निगह की लरज़िश में
हौसले मचलते हैं
‘इन्क़िलाब ज़िन्दाबाद’
ख़ाके-पाक१४ पाक<ref>पवित्र</ref>के बेटे
खेतियों के रखवाले
हाथ कारख़ानों के
शो’लाबार हो जाए
इन्क़िलाब आ जाए
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१.घाव खाया हुआ पक्षी २.मन्दगति ३.द्रुतगति ४.क्षण ५.विस्मृति के आले में सजे हुए हैं ६.शरीर ७.क़ैदी ८.गोलाइयाँ ९.लोहे की १०.अँधेरा ११.लिबास, पहनावा, कुर्ता १२.प्रचण्ड १३.संकल्प १४.पवित्र धरती
</poem>{{KKmeaning}}