भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सांई अवसर के परे / गिरिधर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिधर }} Category:कुण्डलियाँ <poeM>सांई अवसर के परे, को ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:50, 29 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
सांई अवसर के परे, को न सहै दु:ख द्वंद।
जाय बिकाने डोम घर, वै राजा हरिचंद॥
वै राजा हरिचंद, करैं मरघट रखवारी।
धरे तपस्वी वेष, फिरै अर्जुन बलधारी॥
कह 'गिरिधर कविराय, तपै वह भीम रसोई।
को न करै घटि काम, परे अवसर के साई॥