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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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विदा करने निकली जब माता
 
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं
 
::न्याय यही कहलाता ?
 
हमने बचपन साथ बिताये
 
ब्याह हुआ संग संग पति पाये
 
सीता को ही दुःख दिखलाये
 
::क्यों नित नए विधाता ?
 
कोमल चित थे जेठ हमारे
 
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे
 
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
 
::कोई तो समझाता !
 
 
तब वन में था बल स्वामी का
 
सिर पर था न अयश का टीका
 
अब तो छूट रहा भगिनी का
 
::इस घर से ही नाता !
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