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वाजिद जाति के पठान थे, किन्तु हिंदू हो गए थे। कहते हैं एक बार ये शिकार खेलने गए और हिरणी पर तीर चलाने वाले थे कि हृदय में करुणा का संचार हुआ और मन की वृत्ति बदल गई। गुरु के हेतु व्याकुल हुए। दादू दयाल ने कृपा कर इन्हें अपना लिया। उनके 52 पट्टशिष्यों में इनकी भी गणना है। इनके 'उत्पत्तिनामा, 'प्रेमनामा, 'गरमनामा आदि छोटे-छोटे 14 ग्रंथ प्राप्त हैं। ये रचनाएँ 'पंचामृत नाम से संग्रहित हैं। अरिल्ल, दोहे और चौपाई इनके प्रिय छंद हैं। इनकी रचना में प्रभु और गुरु की कृपा से निर्मल जीवन जीने के उपदेश हैं।