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श्रीपति कालपी के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके तीन ग्रंथ प्रसिध्द हैं, 'काव्य-सरोज, कवि-कल्पद्रुम तथा 'अलंकार गंगा। इनकी कविता समासयुक्त होने पर भी सहज है। ॠतु-वर्णन रोचक और चित्रात्मक है।