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"मदमाती रसाडाल की डारन पै / द्विज" के अवतरणों में अंतर

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22:58, 7 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

मदमाती रसाडाल की डारन पै, चढी आनंद सों यों बिराजती है।
कुल जानि की कानि करै न कछू, मन हाथ परयेहिं पारती है॥
कोऊ कैसी करै द्विज तू ही कहै, नहिं नैकौ दया उर धारती है॥
अरी ! क्वैलिया कूकि करेजन की, किरचैं-किरचैं किए डारती है॥