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[[Category:गज़ल]]
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फ़ुरसत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारों
ये न सोचो के अभी उम्र पड़ी है यारों
फ़ुरसत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारो <br>अपने तारीक मकानों से तो बाहर झाँको ये न सोचो के अभी उम्र पड़ी ज़िन्दगी शम्मा लिये दर पे खड़ी है यारो <br><br>यारों
अपने तारीक मकानों से तो बाहर झाँको <br>उनके बिन जी के दिखा देंगे चलो यूँ ही सही ज़िन्दगी शम्मा लिये दर पे खड़ी बात इतनी सी है यारो <br><br>के ज़िद आन पड़ी है यारों
उनके बिन जी के दिखा देंगे चलो यूँ ही सही <br>फ़ासला चंद क़दम का है मना लें चल कर बात इतनी सी सुबह आई है के ज़िद आन पड़ी मगर दूर खड़ी है यारो <br><br>यारों
फ़ासला चंद क़दम का है मना लें चल कर <br>किस की दहलीज़ पे ले जाके सजाऊँ इस को सुबह आई है मगर दूर खड़ी बीच रस्ते में कोई लाश पड़ी है यारो <br><br>यारों
किस की दहलीज़ पे ले जाके सजाऊँ इस को <br>बीच रस्ते में कोई लाश पड़ी है यारो <br><br> जब भी चाहेंगे ज़माने को बदल डालेंगे <br>सिर्फ़ कहने के लिये बात बड़ी है यारो <br>यारों <br/poem>
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