भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितना निठुर यह उपहास / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री }} <poem> कितना निठुर यह उपहास ...)
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
  
 
अश्रु-'कण' कहकर जिसे  
 
अश्रु-'कण' कहकर जिसे  
मैंने बहाया हाय !
+
::::मैंने बहाया हाय !
 
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
 
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
हृदयहारी हास !
+
::::हृदयहारी हास !
कितना निठुर यह उपहास !
+
::::कितना निठुर यह उपहास !
  
 
स्वप्न-सुख की आस में
 
स्वप्न-सुख की आस में
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
वह गया नित लौट -
 
वह गया नित लौट -
 
शत-शत बार आकर पास !
 
शत-शत बार आकर पास !
कितना निठुर यह उपहास !
+
::::कितना निठुर यह उपहास !
('रूप-अरूप)
+
:::::('रूप-अरूप)
 
</poem>
 
</poem>

18:06, 14 अगस्त 2009 का अवतरण


कितना निठुर यह उपहास !
जो अजाने ही गया, वह था मधुर मधुमास !
कितना निठुर यह उपहास !!

अश्रु-'कण' कहकर जिसे
मैंने बहाया हाय !
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
हृदयहारी हास !
कितना निठुर यह उपहास !

स्वप्न-सुख की आस में
सोया रहा दिन-रात,
वह गया नित लौट -
शत-शत बार आकर पास !
कितना निठुर यह उपहास !
('रूप-अरूप)