भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चेहरा हो जाती जब / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:45, 15 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
आकाश को
आवाज़ कैसे मूर्त करती है
जानता हँ तब-
आवाज़ वह
आकाश का मेरे
चेहरा हो जाती तब।