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"चेहरा हो जाती जब / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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आकाश को
आवाज़ कैसे मूर्त करती है
जानता हँ तब-
आवाज़ वह
आकाश का मेरे
चेहरा हो जाती तब।