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हाँफता हिनहिनाता गाज फेंकता | हाँफता हिनहिनाता गाज फेंकता | ||
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डरावनी आवाज़ें थीं | डरावनी आवाज़ें थीं | ||
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निर्मल नहीं था सरोवर | निर्मल नहीं था सरोवर | ||
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अमराई थी पिंजरे की तरह | अमराई थी पिंजरे की तरह | ||
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सच की ओर देखने की कोशिश ज़रूर की | सच की ओर देखने की कोशिश ज़रूर की | ||
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मगर झुलस गईं बरौनियाँ | मगर झुलस गईं बरौनियाँ | ||
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मुश्किल था बचना | मुश्किल था बचना | ||
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फिर भी निकल आया | फिर भी निकल आया | ||
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प्रशिक्षित कुत्ते की तरह | प्रशिक्षित कुत्ते की तरह | ||
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आवाजें अकनता | आवाजें अकनता | ||
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दिशाओं को सूँघता | दिशाओं को सूँघता | ||
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ऊँचे-ऊँचे विचार उठते थे भीतर | ऊँचे-ऊँचे विचार उठते थे भीतर | ||
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मगर मेरे पाठक ! | मगर मेरे पाठक ! | ||
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सोचता हूँ | सोचता हूँ | ||
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यदि सचमुच प्रतिबद्ध होता | यदि सचमुच प्रतिबद्ध होता | ||
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तो कैसे पूरे कर पाता | तो कैसे पूरे कर पाता | ||
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जीवन के साठ बरस ? | जीवन के साठ बरस ? | ||
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13:00, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
गहराई बहुत थी
झाँक नहीं सकता था भीतर
भागा मैं बाहर
हाँफता हिनहिनाता गाज फेंकता
जाना नहीं था
फिर भी गया
रुकना नहीं था
फिर भी रुका
बोलना नहीं था
फिर भी बोला
झुकना नहीं था
फिर भी झुका
रास्ते थे ख़तरनाक
डरावनी आवाज़ें थीं
निर्मल नहीं था सरोवर
अमराई थी पिंजरे की तरह
सच की ओर देखने की कोशिश ज़रूर की
मगर झुलस गईं बरौनियाँ
मुश्किल था बचना
फिर भी निकल आया
प्रशिक्षित कुत्ते की तरह
आवाजें अकनता
दिशाओं को सूँघता
ऊँचे-ऊँचे विचार उठते थे भीतर
मगर मेरे पाठक !
सोचता हूँ
यदि सचमुच प्रतिबद्ध होता
तो कैसे पूरे कर पाता
जीवन के साठ बरस ?