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"जीवन संग्राम / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
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13:11, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
जैसे-जैसे जीवन ढलता है
रस्ता लम्बा होता जाता
यह चोटी गुज़री वह आई
वह गुज़री फिर नई आ गई
अन्तहीन अवरोधों का यह
कठिन सिलसिला बढ़ता जाता
नए-नए टीले बालू के
तेज-तेज चल रही हवाएँ
छाया लम्बी होती जाती
क्षितिज धूसरित होता जाता
समझ रहा था अन्त जिसे
वह तो लगता आरम्भ अभी है
लौट-लौट कर समय आ रहा
फिर से नई चुनौती देता।