भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीवन संग्राम / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=फिर भी कुछ रह जा...)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:11, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

जैसे-जैसे जीवन ढलता है
रस्ता लम्बा होता जाता
यह चोटी गुज़री वह आई
वह गुज़री फिर नई आ गई
अन्तहीन अवरोधों का यह
कठिन सिलसिला बढ़ता जाता
नए-नए टीले बालू के
तेज-तेज चल रही हवाएँ
छाया लम्बी होती जाती
क्षितिज धूसरित होता जाता
समझ रहा था अन्त जिसे
वह तो लगता आरम्भ अभी है
लौट-लौट कर समय आ रहा
फिर से नई चुनौती देता।