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<br> बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
<br>जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
<br>भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।१ ।।
<br>रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।
<br>मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।२ ।।
<br>कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
<br>सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।३ ।।
<br>मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
<br>राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।४ ।।
<br>दो0-सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
<br> आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।<br>
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एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।<br />
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।। १ ।। <br />
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।<br />
तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं।।२ ।। <br />
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू।।<br />
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा।।३ ।। <br />
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।<br />
नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।लेहू।।४ ।। <br />
दो0-यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।<br />
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।2।।<br />
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कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक।।<br />
सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमारे अरि मित्र उदासी।।१ ।। <br />
सबहि रामु प्रिय जेहि बिधि मोही। प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही।।<br />
बिप्र सहित परिवार गोसाईं। करहिं छोहु सब रौरिहि नाई।।<br />
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सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।।<br />
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।।१ ।। <br />
मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू।।<br />
प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।।<br />
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मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।<br />
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।।१ ।। <br />
जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।।<br />
मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।।<br />
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हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी।।<br />
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना।।१ ।। <br />
चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती।।<br />
मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका।।<br />
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