"वक़्त की नफासत..... / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर
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हिचकोले खाती रहीं..... | हिचकोले खाती रहीं..... | ||
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गहरी निस्सारता लेकर | गहरी निस्सारता लेकर | ||
कैद में छटपटाती | कैद में छटपटाती | ||
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भय और बेबसी की | भय और बेबसी की | ||
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इक तारीकी पूरे वजूद में | इक तारीकी पूरे वजूद में | ||
उतरती रही ...... | उतरती रही ...... | ||
वक्त नफ़ासत पूर्ण तरीके से | वक्त नफ़ासत पूर्ण तरीके से | ||
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तस्वीर बनाता रहा ... | तस्वीर बनाता रहा ... | ||
09:51, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
बरसों पहले
जीवन मर्यादाएं
धूसर धुन्धल चित्र लिए
हस्तरेखाओं की तंग घाटियों में
हिचकोले खाती रहीं.....
ऊबड़-खाबड़
बीहड़ों में भटकती
गहरी निस्सारता लेकर
कैद में छटपटाती
आंखों में कातरता
भय और बेबसी की
अवांछित भीड़ लिए
इक तारीकी पूरे वजूद में
उतरती रही ......
वक्त नफ़ासत पूर्ण तरीके से
सीढ़ियों पर बैठा
तस्वीर बनाता रहा ...
तारों को
छू पाने की कोशिश में
न जाने कितने लंबे समय
और संघर्षों से
गुजर जाना पड़ा .....
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
रातों को आती है चाँदनी
दूर पुरनूर वादियों की
गहरी तलहटी से
दिखलाती है मुझे
शिलाओं का नृत्य करना
उच्छवासों से पर्वतों का थिरकना
समुंदरी लहरों के बीच
सीपी में बैठी एक बूंद का
मोती बन जाना
उड़ते हुए पन्ने में
किसी नज़्म का
चुपचाप आकर
मेरी गोद में
गिर जाना
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!