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+ | हमनें अभिषेक किया था<br> | ||
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+ | माता का अरि मुंडो से<br><br> | ||
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+ | सांस्कृतिक उच्च सिंहासन<br> | ||
+ | माँ जिस पर बैठी सुख से<br> | ||
+ | करती थी जग का शासन<br><br> | ||
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17:01, 18 नवम्बर 2006 का अवतरण
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निम्नलिखित कविताओं की आवश्यकता है:
- निराशावादी (लेखक: हरिवंशराय बच्चन)
- ना मैं सो रहा हूँ ना तुम सो रही हो, मगर बीच में यामिनी ढल रही है (लेखक: हरिवंशराय बच्चन)
- hum karen rashtra aaradhan (lekhak: jai shankar prasad)
"हम करें राष्ट्र आराधन" गीत को मैं नीचे लिख रहा हूँ। पाठक इस गीत के लेखक के नाम की पुष्टि करें। ---- ललित कुमार
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
अन्तर से मुख से कृति से
निश्छल हो निर्मल मति से
श्रद्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र आराधन
अपने हँसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र आराधन
अपने अतीत को पढ़ कर
अपना इतिहास उलट कर
अपना भवितव्य समझ कर
हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र आराधन
है याद हमें युग-युग की
जलती अनेक घटनायें
जो माँ के सेवा पथ पर
आयी बन कर विपदायें
हमनें अभिषेक किया था
जननी का अरि शोणित से
हमनें श्रृंगार किया था
माता का अरि मुंडो से
हमनें ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन दे कर
हम करें पुन: संस्थापन
हम करें पुन: संस्थापन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन