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21:54, 4 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुम्हारे स्वप्न
माँ के आँचल से घसीटकर
उस पिल्ले को सड़क पर खड़ा कर दिया,
न रोटी है, न छत है और न मकान है
दाईं तरफ़ व्हिस्की की एजेंसी है
और बाएँ मोड़ पर पेप्सी की दुकान है
बेचारा पिल्ला
पेप्सी पीने को मजबूर है
जीवन की अधमुड़ी घटनाओं पर
सोटने को विवश है, बाध्य है
और सोचना, ... और ज्यादा सोचना,
सोचते रहना ...
सोच-सोचकर एक सोच में मर जाना ही
उसका साध्य है
उसका अतीत है धूमिल
वह भी धूमिल बना
यही उसका बचपन है
यही उसका जीवन है
और यही उसकी चिता है
उसका कष्ट साहित्यिक है
उसकी वेदना सागरीय
और उसका वर्तमान
उसके अतीत का पिता है।