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संभलों कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपय सदुपाय भलासमझो जग को न नीरा निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
निज़ गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ है ये हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को
प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न आहोअहोफिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
 
</poem>
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