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{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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<poem>
'''अहमद फ़राज़ के नाम'''
तुम्हारा हाथ बढ़ा है जो दोस्ती के लिए
मिरे लिए है वो इक-यारे-गमगुसार ग़मगुसार का हाथ
वो हाथ शाख़े-गुले-गुलशने-तमन्ना है
महक रहा है मिरे हाथ में बहार का हाथ
अता हुए हैं जो ज़ुल्फ़ें सँवारने के लिए
ज़मीं से नक़्श मिटाने को ज़ुल्मो-नफ़रत का
फ़ल्क फ़लक से चाँद-सितारे उतारने के लिए
ज़मीने-पाक हमारे जिगर का टुकडा़ है
हमें अज़ीज़ है देहली-ओ-लखनऊ की तरह
तुम्हारे लहजे लहज़े में मेरी नवा का लहजा लहज़ा है
तुम्हारा दिल है हसीं मेरी आरज़ू की तरह
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