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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शकेब जलाली]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[श्रीकान्त जोशी ]]</td>
 
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पास रह के भी बोहत दूर हैं दोस्त
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अपने हालात से मजबूर हैं दोस्त
+
  
तर्क-ए-उल्फत भी नहीं कर सकते
+
साथ देने से भी माज़ूर हैं दोस्त
+
  
गुफ्तगू के लिए उनवां भी नहीं
 
बात करने पे भी मजबूर हैं दोस्त
 
  
यह चिराग अपने लिए रहने दे
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रोटी रोटी रोटी
तेरी रातें भी तो बे-नूर हैं दोस्त
+
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
 +
रोटी रोटी रोटी।
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जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
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रोटी रोटी रोटी।
  
सभी पज़मुर्दा हैं महफ़िल में शकेब
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अपने घर में रखें करोड़ों बाहर दिखें भिखारी
मैं परेशान हूँ, रंजूर हैं दोस्त
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सहसा नहीं समझ में आती ऐसों की मक्कारी
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उधर करोड़ों जुटा न पाते तन पर एक लंगोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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शोर बहुत है जन या हरिजन सब मरते हैं उनसे
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महाजनियों की छुपी हुक़ूमत में सब झुलसे-झुलसे
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चेहरे पर तह बेशरमी की कितनी मोटी-मोटी!
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रोटी रोटी रोटी।
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पैसों के बल टिका हुआ है प्रजातंत्र का खंबा
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बिका हुआ ईश्वर रच सकता यह मनहूस अचंभा
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जमा रहे हैं बेटा-बेटी, दौलत सत्ता-गोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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बर्फ़ हिमालय की चोटी की मुझको दिखती काली
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काली का खप्पर ख़ाली है नाच रही दे ताली
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मैं देता हूँ, वो ले आकर, मेरी बोटी-बोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
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जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
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रोटी रोटी रोटी।
 
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13:50, 22 सितम्बर 2009 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: नया राष्ट्रगीत
  रचनाकार: श्रीकान्त जोशी

 	

	


रोटी रोटी रोटी
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
रोटी रोटी रोटी।
जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
रोटी रोटी रोटी। 

अपने घर में रखें करोड़ों बाहर दिखें भिखारी
सहसा नहीं समझ में आती ऐसों की मक्कारी
उधर करोड़ों जुटा न पाते तन पर एक लंगोटी
रोटी रोटी रोटी। 

शोर बहुत है जन या हरिजन सब मरते हैं उनसे
महाजनियों की छुपी हुक़ूमत में सब झुलसे-झुलसे
चेहरे पर तह बेशरमी की कितनी मोटी-मोटी!
रोटी रोटी रोटी। 

पैसों के बल टिका हुआ है प्रजातंत्र का खंबा
बिका हुआ ईश्वर रच सकता यह मनहूस अचंभा
जमा रहे हैं बेटा-बेटी, दौलत सत्ता-गोटी
रोटी रोटी रोटी। 

बर्फ़ हिमालय की चोटी की मुझको दिखती काली
काली का खप्पर ख़ाली है नाच रही दे ताली
मैं देता हूँ, वो ले आकर, मेरी बोटी-बोटी
रोटी रोटी रोटी।
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
रोटी रोटी रोटी।