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"वायु बहती शीत-निष्ठुर / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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मृत्यु हिम उच्छवास वाली।
 
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क्या जला, जलकर बुझा, ठंढ़ा हुआ फिर प्रकृति का उर!
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थी न सब दिन त्रासदाता
 
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वायु ऐसी--यह बताता
 
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एक जोड़ा पेंडुकी का ड़ाल पर बैठा सिकुड़-जुड़!
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एक जोड़ा पेंडुकी का डाल पर बैठा सिकुड़-जुड़!
 
वायु बहती शीत-निष्ठुर!
 
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00:00, 4 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

ताप जीवन श्वास वाली,
मृत्यु हिम उच्छवास वाली।
क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

पड़ गया पाला धरा पर,
तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
हो गए निर्जीव से--यह देख मेरा उर भयातुर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

थी न सब दिन त्रासदाता
वायु ऐसी--यह बताता
एक जोड़ा पेंडुकी का डाल पर बैठा सिकुड़-जुड़!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!