भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''नया राष्ट्रगीत<br>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''वह कैसे कहेगी<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[श्रीकान्त जोशी ]]</td>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अशोक वाजपेयी]]</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
  
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
रोटी रोटी रोटी
+
वह कैसे कहेगी – हाँ!
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
+
हाँ कहेंगे
रोटी रोटी रोटी।
+
उसके अनुरक्त नेत्र
जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
+
उसके उदग्र-उत्सुक कुचाग्र
रोटी रोटी रोटी।
+
उसकी देह की चकित धूप
 
+
उसके आर्द्र अधर
अपने घर में रखें करोड़ों बाहर दिखें भिखारी
+
कहेंगे – हाँ
सहसा नहीं समझ में आती ऐसों की मक्कारी
+
वह कैसे कहेगी – हाँ ?
उधर करोड़ों जुटा न पाते तन पर एक लंगोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
 
+
शोर बहुत है जन या हरिजन सब मरते हैं उनसे
+
महाजनियों की छुपी हुक़ूमत में सब झुलसे-झुलसे
+
चेहरे पर तह बेशरमी की कितनी मोटी-मोटी!
+
रोटी रोटी रोटी।
+
 
+
पैसों के बल टिका हुआ है प्रजातंत्र का खंबा
+
बिका हुआ ईश्वर रच सकता यह मनहूस अचंभा
+
जमा रहे हैं बेटा-बेटी, दौलत सत्ता-गोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
 
+
बर्फ़ हिमालय की चोटी की मुझको दिखती काली
+
काली का खप्पर ख़ाली है नाच रही दे ताली
+
मैं देता हूँ, वो ले आकर, मेरी बोटी-बोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
+
जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
 
</pre>
 
</pre>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>

14:00, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: वह कैसे कहेगी
  रचनाकार: अशोक वाजपेयी
वह कैसे कहेगी – हाँ!
हाँ कहेंगे
उसके अनुरक्त नेत्र
उसके उदग्र-उत्सुक कुचाग्र
उसकी देह की चकित धूप
उसके आर्द्र अधर
कहेंगे – हाँ
वह कैसे कहेगी – हाँ ?