"चंद शेर / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो | उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो | ||
+ | |||
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये । | न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये । | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 12: | ||
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं | ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं | ||
+ | |||
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । | पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 18: | ||
जी बहुत चाहता है सच बोलें | जी बहुत चाहता है सच बोलें | ||
+ | |||
क्या करें हौसला नहीं होता । | क्या करें हौसला नहीं होता । | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 25: | ||
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे | दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे | ||
+ | |||
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों । | जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों । | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 32: | ||
एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा | एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा | ||
+ | |||
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये । | ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये । | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 38: | ||
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी | इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी | ||
+ | |||
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे । | लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे । | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 44: | ||
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है | वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है | ||
+ | |||
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे । | कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे । | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 50: | ||
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में | लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में | ||
+ | |||
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में। | तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में। | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 56: | ||
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, | पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, | ||
+ | |||
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते । | आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते । | ||
पंक्ति 53: | पंक्ति 62: | ||
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था. | तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था. | ||
+ | |||
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला । | फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला । | ||
पंक्ति 58: | पंक्ति 68: | ||
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है | मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है | ||
+ | |||
मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है । | मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है । | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 74: | ||
मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ | मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ | ||
+ | |||
चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे । | चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे । |
11:55, 14 जून 2007 का अवतरण
कवि: बशीर बद्र
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
--
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
--
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।
--
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
--
एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
--
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
--
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
--
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
--
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
--
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
--
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है ।
--
मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।