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एक बच्ची को चिट्ठी / शिवप्रसाद जोशी
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04:42, 6 अक्टूबर 2009
<poem>
हमारे चेहरे धूल और पसीने से भर जाते हैं
बख़ार
बुख़ार
से तपा रहता है शरीर
उदासी बर्फ़ की तरह भीतर जमी रहती है
और तुम्हारी याद आती है तान्या
अनिल जनविजय
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