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"दूल्ह राम / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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दूल्ह राम, सीय दुलही री।<br />
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घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥<br />
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ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥<br />
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|रचनाकार=तुलसीदास
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मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥<br />
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दूल्ह राम, सीय दुलही री।
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥<br />
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घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥<br />
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ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥
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मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥
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रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥
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17:59, 9 अक्टूबर 2009 का अवतरण

दूल्ह राम, सीय दुलही री।
घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥
ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥
जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥
सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥
मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥