भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आजाद / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
पैगम्बtर के एक शिष्य ने  
+
पैगम्बर के एक शिष्य ने  
 
पूछा, 'हजरत बंदे को शक  
 
पूछा, 'हजरत बंदे को शक  
 
है आजाद कहां तक इंसा  
 
है आजाद कहां तक इंसा  
दुनिया में,पाबंद कहां तक?'  
+
दुनिया में,पाबंद कहां तक?'
 +
 
 
'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,  
 
'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,  
 
'अच्छा, पैर उठाओ उपर'  
 
'अच्छा, पैर उठाओ उपर'  

00:34, 13 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

पैगम्बर के एक शिष्य ने
पूछा, 'हजरत बंदे को शक
है आजाद कहां तक इंसा
दुनिया में,पाबंद कहां तक?'

'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,
'अच्छा, पैर उठाओ उपर'
'जैस हुक्मा!' मुरीद सामने
खड़ा हो गया एक पैर पर!

'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '
बोले हंस कर नबी फिर तुरत,
बार बार गिर, कहा शिष्य ने
'यह तो नामुमकिन है हजरत'

'हो आजाद यहां तक, कहता
तुमसे एक पैर उठ उपर,
बंधे हुए दुनिया से, कहता
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -
पैगम्बसर का था यह उत्तर!