भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्त्री / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=ग्राम्या / सुमित्रानंदन पंत | |संग्रह=ग्राम्या / सुमित्रानंदन पंत | ||
}} | }} | ||
− | यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर , | + | {{KKCatKavita}} |
− | दल पर दल खोल ह्रदय के अस्तर | + | <poem> |
− | जब बिठलाती प्रसन्न होकर | + | यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर, |
− | वह अमर प्रणय के शतदल पर ! | + | दल पर दल खोल ह्रदय के अस्तर |
+ | जब बिठलाती प्रसन्न होकर | ||
+ | वह अमर प्रणय के शतदल पर ! | ||
− | मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर | + | मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर |
− | क्षण में प्राणों की पीड़ा हर | + | क्षण में प्राणों की पीड़ा हर |
− | नवजीवन का दे सकती वर | + | नवजीवन का दे सकती वर |
− | वह अधरों पर धर मदिराधर | + | वह अधरों पर धर मदिराधर |
− | यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर, | + | यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर, |
− | वासनावर्त में दल प्रखर | + | वासनावर्त में दल प्रखर |
− | वह अंध गर्त में चिर दुस्तर | + | वह अंध गर्त में चिर दुस्तर |
− | नर को धेकेल सकती सत्वर ! < | + | नर को धेकेल सकती सत्वर ! |
+ | </poem> |
14:08, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,
दल पर दल खोल ह्रदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर !
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर
नवजीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में दल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को धेकेल सकती सत्वर !