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"पानी और धूप / सुभद्राकुमारी चौहान" के अवतरणों में अंतर

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अभी अभी थी धूप, बरसने
 
अभी अभी थी धूप, बरसने
 
 
लगा कहाँ से यह पानी
 
लगा कहाँ से यह पानी
 
 
किसने फोर घड़े बादल के
 
किसने फोर घड़े बादल के
 
 
की है इतनी शैतानी।
 
की है इतनी शैतानी।
 
  
 
सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया
 
सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया
 
 
अपने घर का दरवाजा़
 
अपने घर का दरवाजा़
 
 
उसकी माँ ने भी क्‍या उसको
 
उसकी माँ ने भी क्‍या उसको
 
 
बुला लिया कहहकर आजा।
 
बुला लिया कहहकर आजा।
 
  
 
ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं
 
ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं
 
 
बादल हैं किसके काका
 
बादल हैं किसके काका
 
 
किसको डाँट रहे हैं, किसने
 
किसको डाँट रहे हैं, किसने
 
 
कहना नहीं सुना माँ का।
 
कहना नहीं सुना माँ का।
 
  
 
बिजली के आँगन में अम्‍माँ
 
बिजली के आँगन में अम्‍माँ
 
 
चलती है कितनी तलवार
 
चलती है कितनी तलवार
 
 
कैसी चमक रही है फिर भी
 
कैसी चमक रही है फिर भी
 
 
क्‍यों खाली जाते हैं वार।
 
क्‍यों खाली जाते हैं वार।
 
  
 
क्‍या अब तक तलवार चलाना
 
क्‍या अब तक तलवार चलाना
 
 
माँ वे सीख नहीं पाए
 
माँ वे सीख नहीं पाए
 
 
इसीलिए क्‍या आज सीखने
 
इसीलिए क्‍या आज सीखने
 
 
आसमान पर हैं आए।
 
आसमान पर हैं आए।
 
  
 
एक बार भी माँ यदि मुझको
 
एक बार भी माँ यदि मुझको
 
 
बिजली के घर जाने दो
 
बिजली के घर जाने दो
 
 
उसके बच्‍चों को तलवार
 
उसके बच्‍चों को तलवार
 
 
चलाना सिखला आने दो।
 
चलाना सिखला आने दो।
 
  
 
खुश होकर तब बिजली देगी
 
खुश होकर तब बिजली देगी
 
 
मुझे चमकती सी तलवार
 
मुझे चमकती सी तलवार
 
 
तब माँ कर न कोई सकेगा
 
तब माँ कर न कोई सकेगा
 
 
अपने उपर अत्‍याचार।
 
अपने उपर अत्‍याचार।
 
  
 
पुलिसमैन अपने काका को
 
पुलिसमैन अपने काका को
 
 
फिर न पकड़ने आएँगे
 
फिर न पकड़ने आएँगे
 
 
देखेंगे तलवार दूर से ही
 
देखेंगे तलवार दूर से ही
 
 
वे सब डर जाएँगे।
 
वे सब डर जाएँगे।
 
  
 
अगर चाहती हो माँ काका
 
अगर चाहती हो माँ काका
 
 
जाएँ अब न जेलखाना
 
जाएँ अब न जेलखाना
 
 
तो फिर बिजली के घर मुझको
 
तो फिर बिजली के घर मुझको
 
 
तुम जल्‍दी से पहुँचाना।
 
तुम जल्‍दी से पहुँचाना।
 
  
 
काका जेल न जाएँगे अब
 
काका जेल न जाएँगे अब
 
 
तूझे मँगा दूँगी तलवार
 
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पर बिजली के घर जाने का
 
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अब मत करना कभी विचार।
 
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16:08, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण

अभी अभी थी धूप, बरसने
लगा कहाँ से यह पानी
किसने फोर घड़े बादल के
की है इतनी शैतानी।

सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया
अपने घर का दरवाजा़
उसकी माँ ने भी क्‍या उसको
बुला लिया कहहकर आजा।

ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं
बादल हैं किसके काका
किसको डाँट रहे हैं, किसने
कहना नहीं सुना माँ का।

बिजली के आँगन में अम्‍माँ
चलती है कितनी तलवार
कैसी चमक रही है फिर भी
क्‍यों खाली जाते हैं वार।

क्‍या अब तक तलवार चलाना
माँ वे सीख नहीं पाए
इसीलिए क्‍या आज सीखने
आसमान पर हैं आए।

एक बार भी माँ यदि मुझको
बिजली के घर जाने दो
उसके बच्‍चों को तलवार
चलाना सिखला आने दो।

खुश होकर तब बिजली देगी
मुझे चमकती सी तलवार
तब माँ कर न कोई सकेगा
अपने उपर अत्‍याचार।

पुलिसमैन अपने काका को
फिर न पकड़ने आएँगे
देखेंगे तलवार दूर से ही
वे सब डर जाएँगे।

अगर चाहती हो माँ काका
जाएँ अब न जेलखाना
तो फिर बिजली के घर मुझको
तुम जल्‍दी से पहुँचाना।

काका जेल न जाएँगे अब
तूझे मँगा दूँगी तलवार
पर बिजली के घर जाने का
अब मत करना कभी विचार।