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"आई छाक बुलाये स्याम / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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आई छाक बुलाये स्याम।
 
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यह सुनि सखा सभै जुरि आये, सुबल सुदामा अरु श्रीदाम॥
 
यह सुनि सखा सभै जुरि आये, सुबल सुदामा अरु श्रीदाम॥
 
 
कमलपत्र दौना पलास के सब आगे धरि परसत जात।
 
कमलपत्र दौना पलास के सब आगे धरि परसत जात।
 
 
ग्वालमंडली मध्यस्यामधन सब मिलि भोजन रुचिकर खात॥
 
ग्वालमंडली मध्यस्यामधन सब मिलि भोजन रुचिकर खात॥
 
 
ऐसौ भूखमांझ इह भौजन पठै दियौ करि जसुमति मात।
 
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सूर, स्याम अपनो नहिं जैंवत, ग्वालन कर तें लै लै खात॥
 
सूर, स्याम अपनो नहिं जैंवत, ग्वालन कर तें लै लै खात॥
 
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19:02, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण


राग सारंग


आई छाक बुलाये स्याम।
यह सुनि सखा सभै जुरि आये, सुबल सुदामा अरु श्रीदाम॥
कमलपत्र दौना पलास के सब आगे धरि परसत जात।
ग्वालमंडली मध्यस्यामधन सब मिलि भोजन रुचिकर खात॥
ऐसौ भूखमांझ इह भौजन पठै दियौ करि जसुमति मात।
सूर, स्याम अपनो नहिं जैंवत, ग्वालन कर तें लै लै खात॥


भावार्थ :- `ऐसी भूख ...मात,' कैसी कड़ाके की भूख लगी थी। जसोदा मैया बड़ी भली है, जो इस भूख में ताजी छाक तैयार करके यहां भेज दी है। `स्याम....खात,' ग्वालबालों के हाथ से छीन छीनकर श्रीकृष्ण खाते हैं अपनी छाक इतनी मीठी नहीं लगती, जितनी कि उन सबके पत्तलों की।


शब्दार्थ :- छाक = वह भोजन, जो खेत पर या चरागाह पर भेज दिया जाता है। ब्रज में यह भोजन महेरी, माखन-रोटी आदि का होता है। सुबल, सुदामा, श्रीदामा = ग्वाल बालों के नाम। पलास =ढाक। परसत जात = परोसे जाते हैं। रुचिकरि =बड़े स्वाद से। करि = बनाकर।