"उपमा हरि तनु देखि लजानी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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− | उपमा हरि तनु देखि लजानी। | + | <poem> |
− | कोउ जल मैं कोउ बननि रहीं दुरि कोउ कोउ गगन समानी॥ | + | उपमा हरि तनु देखि लजानी। |
− | मुख निरखत ससि गयौ अंबर कौं तडि़त दसन-छबि हेरि। | + | कोउ जल मैं कोउ बननि रहीं दुरि कोउ कोउ गगन समानी॥ |
− | मीन कमल कर चरन नयन डर जल मैं कियौ बसेरि॥ | + | मुख निरखत ससि गयौ अंबर कौं तडि़त दसन-छबि हेरि। |
− | भुजा देखि अहिराज लजाने बिबरनि पैठे धाइ। | + | मीन कमल कर चरन नयन डर जल मैं कियौ बसेरि॥ |
− | कटि निरखत केहरि डर मान्यौ बन-बन रहे दुराइ॥ | + | भुजा देखि अहिराज लजाने बिबरनि पैठे धाइ। |
− | गारी देहिं कबिनि कैं बरनत श्रीअंग पटतर देत। | + | कटि निरखत केहरि डर मान्यौ बन-बन रहे दुराइ॥ |
− | सूरदास हमकौं सरमावत नाउं हमारौ लेत॥< | + | गारी देहिं कबिनि कैं बरनत श्रीअंग पटतर देत। |
+ | सूरदास हमकौं सरमावत नाउं हमारौ लेत॥ | ||
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भक्त शिरोमणि सूरदास जी अपने इस पद में भगवान् की अतुलनीय शोभा का वर्णन कर रहे हैं। श्रीकृष्ण की शोभा को देखकर सारी उपमाएं लुप्त हो गई। कोई उपमा जल में जा छिपी तो कोई वन में दुबक गई और कोई-कोई उपमा तो नभमंडल में समा गई। श्रीकृष्ण का मुख देखकर स्वयं को लज्जित जानता हुआ चंद्रमा आकाश में चला गया। इसी प्रकार उनके दांतों की शोभा के आगे स्वयं को लज्जित पाकर बिजली भी आकाश में लुप्त हो गई। मछली, कमल पुष्प ने श्रीकृष्ण के हाथों, पैरों व नेत्रों से भय खाकर जल में ही बसेरा कर लिया। उनकी भुजाओं को देखकर सर्पराज भी लज्जित होकर बिल में जा छिपा। श्रीकृष्ण के कटि भाग की शोभा इतनी मनोहर थी कि उसके आगे स्वयं को लज्जित समझकर सिंह भी वन में चला गया। सूरदास कहते हैं कि जितनी भी उपमाएं हैं वह सब कवियों को गाली देती हैं कि कविगण श्रीप्रभु के अंगों की तुलना उससे देते हैं। इस तरह उनके अंगों के समक्ष हमें लज्जित करते हैं। इसी से मिलता-जुलता पद महाकवि विद्यापति का भी है। | भक्त शिरोमणि सूरदास जी अपने इस पद में भगवान् की अतुलनीय शोभा का वर्णन कर रहे हैं। श्रीकृष्ण की शोभा को देखकर सारी उपमाएं लुप्त हो गई। कोई उपमा जल में जा छिपी तो कोई वन में दुबक गई और कोई-कोई उपमा तो नभमंडल में समा गई। श्रीकृष्ण का मुख देखकर स्वयं को लज्जित जानता हुआ चंद्रमा आकाश में चला गया। इसी प्रकार उनके दांतों की शोभा के आगे स्वयं को लज्जित पाकर बिजली भी आकाश में लुप्त हो गई। मछली, कमल पुष्प ने श्रीकृष्ण के हाथों, पैरों व नेत्रों से भय खाकर जल में ही बसेरा कर लिया। उनकी भुजाओं को देखकर सर्पराज भी लज्जित होकर बिल में जा छिपा। श्रीकृष्ण के कटि भाग की शोभा इतनी मनोहर थी कि उसके आगे स्वयं को लज्जित समझकर सिंह भी वन में चला गया। सूरदास कहते हैं कि जितनी भी उपमाएं हैं वह सब कवियों को गाली देती हैं कि कविगण श्रीप्रभु के अंगों की तुलना उससे देते हैं। इस तरह उनके अंगों के समक्ष हमें लज्जित करते हैं। इसी से मिलता-जुलता पद महाकवि विद्यापति का भी है। |
19:09, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण
राग गौरी
उपमा हरि तनु देखि लजानी।
कोउ जल मैं कोउ बननि रहीं दुरि कोउ कोउ गगन समानी॥
मुख निरखत ससि गयौ अंबर कौं तडि़त दसन-छबि हेरि।
मीन कमल कर चरन नयन डर जल मैं कियौ बसेरि॥
भुजा देखि अहिराज लजाने बिबरनि पैठे धाइ।
कटि निरखत केहरि डर मान्यौ बन-बन रहे दुराइ॥
गारी देहिं कबिनि कैं बरनत श्रीअंग पटतर देत।
सूरदास हमकौं सरमावत नाउं हमारौ लेत॥
भक्त शिरोमणि सूरदास जी अपने इस पद में भगवान् की अतुलनीय शोभा का वर्णन कर रहे हैं। श्रीकृष्ण की शोभा को देखकर सारी उपमाएं लुप्त हो गई। कोई उपमा जल में जा छिपी तो कोई वन में दुबक गई और कोई-कोई उपमा तो नभमंडल में समा गई। श्रीकृष्ण का मुख देखकर स्वयं को लज्जित जानता हुआ चंद्रमा आकाश में चला गया। इसी प्रकार उनके दांतों की शोभा के आगे स्वयं को लज्जित पाकर बिजली भी आकाश में लुप्त हो गई। मछली, कमल पुष्प ने श्रीकृष्ण के हाथों, पैरों व नेत्रों से भय खाकर जल में ही बसेरा कर लिया। उनकी भुजाओं को देखकर सर्पराज भी लज्जित होकर बिल में जा छिपा। श्रीकृष्ण के कटि भाग की शोभा इतनी मनोहर थी कि उसके आगे स्वयं को लज्जित समझकर सिंह भी वन में चला गया। सूरदास कहते हैं कि जितनी भी उपमाएं हैं वह सब कवियों को गाली देती हैं कि कविगण श्रीप्रभु के अंगों की तुलना उससे देते हैं। इस तरह उनके अंगों के समक्ष हमें लज्जित करते हैं। इसी से मिलता-जुलता पद महाकवि विद्यापति का भी है।