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18:30, 23 अक्टूबर 2009 का अवतरण
भाई धर्मेन्द्र जी! 'सक्रिय परियोजनाओं की सूची' से 'नीहार' को हटा दिया है। हम आपके बेहद आभारी हैं कि आपने 'नीहार' का टंकण पूरा कर दिया है। अब आगे क्या करने जा रहे हैं? सादर --अनिल जनविजय १३:२०, २३ सितम्बर २००९ (UTC)
प्रिय भाई धर्मेन्द्र जी! आपने महादेवी जी के'नीहार' संग्रह का पन्ना अलग से बना दिया है, यह अच्छा है। आप उसमें संग्रह की सभी कविताएँ जोड़ेंगे, यह भी ठीक है। लेकिन महादेवी जी के मुख्य पन्ने पर भी कुछ कविताएँ रहनी चाहिएँ ताकि उस पन्ने पर पहुँचने वाले पाठक को उस पर सिर्फ़ कविता-संग्रहों के नाम ही नहीं दिखाई पड़ें, बल्कि कुछ कविताएँ भी दिखाई पड़ें। आम तौर पर हम किसी भी कवि की प्रमुख कविताएँ ही उस कवि के मुख्य पृष्ठ पर जोड़ते हैं ताकि पाठक को उस पन्ने पर पहुँचते ही उस कवि की मुख्य कविताएँ दिखाई दे जाएँ। आप भी आगे से इस बात का ख़याल रखियेगा कि कवि की प्रमुख कविताएँ न हटाएँ। अब महादेवी जी की उन कविताओं के नाम फिर से जोड़ने की बात पर, जो आपने हटा दी थीं, मैं अपना उत्तर दे रहा हूँ। दरअसल आरम्भ में मैंने यह नहीं देखा था कि आपने 'नीहार' का अलग पन्ना बना दिया है। लेकिन जब यह देख लिया तो दोबारा से कविताएँ नहीं हटाईं। आप चाहें तो अब फिर से उन्हें हटा सकते हैं। यह समझिए कि एक ग़लतफ़हमी के तहत मैंने उन्हें फिर से जोड़ दिया था। लेकिन एक बात और भी यह कहनी है कि सिर्फ़ शीर्षक हटा देने से वह पन्ना कोष में से गायब नहीं हो जाता। वह कविता कोश में सुरक्षित रहता है। बस, शीर्षक गायब हो जाता है। इसलिए उस पूरे पन्ने को हटाने की ज़रूरत होती है। लेकिन यह पन्ना हटाने का अधिकार अभी तक आपको नहीं दिया गया है। जब कोश की प्रशासक प्रतिष्ठा जी आपको यह अधिकार दे देंगी तो आप भी कोश में से कोई भी पन्ना हटा सकेंगे। शुभकामनाओं सहित सादर --अनिल जनविजय १४:३४, २० सितम्बर २००९ (UTC)
प्रिय भाई अटल जी के पूरे के पूरे संग्रहों को और उनकी कुछ कविताओं को इस कोश में नहीं जोड़ना अभी सम्भव नहीं है, क्योंकि वे पूरी तरह से राजनीतिक कविताएँ हैं। -अनिल
मैं अटल बिहारी वाजपेयी जी की के कुछ संग्रह और डा़लना चाहता हूँ। कैसे करूँ?
शिकायत उचित है। आगे से ध्यान रखूँगा।
प्रिय भाई! आपसे एक और शिकायत यह भी है कि आप जो कविताएँ जोड़ रहे हैं, वे नेट से लेकर जोड़ रहे हैं। लेकिन जब आप फ़ोन्ट परिवर्तक का उपयोग करते हैं तो वर्तनी की बहुत सारी ग़लतियाँ भी हो जाती हैं। कृपया इन ग़लतियों को रचना कोष में जोड़ने से पहले अवश्य सुधार दिया करें। अन्यथा कुछ ही दिनों में यह कोश कूड़ाघर दिखाई देने लगेगा। तरूण भटनागर की कविताओं में तो बेतहाशा ग़लतियाँ हैं। सादर अनिल जनविजय, १५ सितम्बर २००९
आदरणीय,
कविता कोश में आपका तेज़ी से बढ़ता हुआ योगदान सराहनीय है। कविता कोश को आप जैसे ही योगदानकर्ताओं की आवश्यकता है तभी हिन्दी काव्य के कोश को और विकसित करने का स्वप्न पूरा हो सकेगा। आप कौन हैं, क्या करते हैं और कहाँ रहते हैं -यह सब जानने की उत्सुकता है। आप यह जानकारी अपने सदस्य पन्नें पर लिख सकते हैं ताकि जिसे भी आपके बारे में जानने की उत्सुकता हो वह आपने पन्नें पर जा कर पढ़ सके। यदि हो सके तो अपना एक चित्र भी kavitakosh@gmail.com पर भेजें।
अपना योगदान इसी तरह बनाये रखें।
सादर
--सम्यक ११:०८, १३ सितम्बर २००९ (UTC)
विषय सूची
चित्र अपलोड करने का अधिकार
आपके योगदान को देखते हुए आपको कविता कोश में चित्र अपलोड करने और पन्नों के नाम बदनें का अधिकार दिया जा रहा है। अब से आप यह दोनों कार्य कर सकेंगे। इन कार्यों को करने वाले योगदानकर्ताओं के समूह में आपका स्वागत है और इन कार्यों में हाथ बंटाने के लिये कोश आपका आभारी है।
सादर
--सम्यक २०:५५, १४ सितम्बर २००९ (UTC)
आदरणीय बन्धु, कृपया आप संग्रहों पर sort order न डालें इससे कविता संग्रह में प्रकाशित रचनाओं का क्रम बिगड़ता है और इस पर रचनाकार को ऐतराज़ होगा। आशा है कि आप मेरे इस सुझाव को अन्यथा नहीं लेंगे।--प्रकाश बादल २१:०३, १४ सितम्बर २००९ (UTC)
आदरणीय, आपके सुझाव का स्वागत है। परन्तु sort order डा़लने पर मुझे एक ही दॄष्टि में पता चल जाता है कि कौन सी कविता प्रकाशित नहीं हुई है। अतः कविता संग्रहों के अलावा बाकी के स्थानों पर तो मैं sort order डा़ल सकता हूँ ना।
बिल्कुल, संग्रहों के अलावा अन्य स्थानों पर आप sort order डाल सकते हैं लेकिन आप रचना के होने का पता नीले रंग से और न होने का पता लाल रंगे से भी तो लगा सकते हैं।लेकिन मान लीजिए यदि आप किसी लेखक की संग्रह सूचि पर ही सॉर्ट ऑर्डर लगा देते हैं तो भी वो उनके प्रकाशन के क्रम से हट कर वर्णमाला के क्रम पर आ जाते हैं जो उचित नहीं लगता। इस बारे में आप अधिक तकनीकी जानकारी सम्यक जी,ललित जी और प्रतिष्ठा जी से kavitakosh@gmail.com पर मेल करके भी जान सकते हैं। मैंने आपसे sort order न डालने का आग्रह इसलिए किया था ताकि जिस क्रम में रचना या संग़्रह प्रकाशित हुए हैं उसका क्रम ऊपर नीचे न हो। आप sort order न ही लगाएं तो ठीक रहेगा। आप कविता कोश को जिस तेज़ी से दे रहे हैं ज़ाहिर है उस गति से कविता कोश अपने लक्ष्य की ओर तीव्र गति से बढेगा। कविता कोश का सहयोगी सदस्य होने के नाते मैं आपके द्वारा कोश को दिये जा रहे योगदान के लिए आपका आभार प्रकट करता हूँ। सादर ! --प्रकाश बादल ०५:५८, १५ सितम्बर २००९ (UT
कविता कोश में वार्तालाप
नमस्कार,
कविता कोश में सदस्यों के बीच वार्तालाप को सुचारु बनाने के उद्देशय से मैनें एक लेख लिखा है। कृपया इसे पढ़ें और इसके अनुसार कोश में उपलबध वार्तालाप सुविधाओं का प्रयोग करें। हो सकता है कि आप इन सुविधाओं का प्रयोग पहले से करते रहें हों -फिर भी आपको यह लेख पूरा पढ़ना चाहिये ताकि यदि आपको किसी सुविधा के बारे में पता नहं है या आप इन सुविधाओं का प्रयोग करने में कोई त्रुटि कर रहे हैं तो आपको उचित जानकारी मिल सके।
यह लेख सदस्य वार्ता और चौपाल का प्रयोग नाम से उपलब्ध है।
शुभाकांक्षी
--सम्यक १६:०१, २६ सितम्बर २००९ (UTC)
सादर नमस्कार धर्मेन्द्र जी
हरिवंश राय बच्चन जी की कविताएँ जोड़ते समय कृपया हर रचना में KKCatKavita श्रेणी भी जोड़ते जाएँ
पाठक को खोज को आसान करने के लिए कविता कोश में ग़ज़ल नज़्म कविता त्रिवेणी क़तअ बाल रचनाएँ आदि कई श्रेणियाँ दी गई हैं
अगर आपको कोई दुविधा हो तो आप अनिल जी या टीम के किसी भी सदस्य से जानकारी ले सकते हैं आप जितनी लगन से दुर्लभ रचनाएँ कविता कोश में जोड़ रहे हैं उसके लिए हम जैसे देश से दूर बैठे पाठक आपके सदा आभारी रहेंगे
Shrddha --Shrddha ०६:३५, २८ सितम्बर २००९ (UTC)
धन्यवाद
धर्मेन्द्र जी! "एकान्त संगीत" का टंकण पूरा करने के लिए मैं निजी रूप से और कविता कोश टीम की तरफ़ से आपका आभारी हूँ। आप जिस तेज़ी से काम कर रहे हैं, उसके लिए आभार शब्द कम है, लेकिन हम सब हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसलिए ज़्यादा-कुछ और भी नहीं कहूंगा। सादर --अनिल जनविजय २०:४२, २९ सितम्बर २००९ (UTC)
’ड़’ और ’ढ़’के नीचे बिन्दी
प्रिय धर्मेन्द्र जी, आप बड़ी तेज़ी से और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, जब हम सब लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं, आप जुटे हुए हैं। इसके लिए आभार। लेकिन मैं आपका ध्यान एक छोटी सी भूल की ओर दिलाना चाहता हूँ कि ’ड़’ अक्षर ’ड’ अक्षर से भिन्न होता है। ’गड़बड़’ में तो ’ड़’ के नीचे बिन्दी लगेगी, लेकिन ’डाल’ और ’डंडा’ और ’ठंडा’ जैसे शब्दों में ’ड’ अक्षर बिना बिन्दी के लिखा जाएगा। ये दो अलग-अलग ध्वनियाँ हैं। आप शुरू से ही यह भूल करते रहे हैं। इसी तरह से ’ढ’ और ’ढ़’दो अलग-अलग ध्वनियाँ हैं। आशा है, आप आगे से इसका ख़याल रखेंगे। और मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे। सादर --अनिल जनविजय १८:३७, ३ अक्तूबर २००९ (UTC)
निशा निमंत्रण
प्रिय धर्मेन्द्र जी! आप ’निशा निमंत्रण’ को टाईप कर लीजिए। फिर मैं अपनी सुविधा से उसको आरम्भ से अन्त तक पूरा देख लूंगा और मूल कविताओं से टाईप की हुई कविताओं का मिलान करके उन्हें सुरक्षित कर दूंगा। सुरक्षित करने के बाद उन पन्नों पर कोई भी बदलाव करना कविता कोश के सहयोगियों के लिए असम्भव हो जाएगा। केवल प्रबन्धक ही फिर बदलाव कर सकेंगे। यह ठीक रहेगा? सादर --अनिल जनविजय ०५:१८, ४ अक्तूबर २००९ (UTC)
प्रिय धर्मेन्द्र जी! मुझे अभी एक-दो हफ़्ते लग जाएंगे क्योंकि बच्चन जी की पूरी रचनावली मेरे दूसरे फ़्लैट में बनी मेरी लाइब्रेरी में रखी है। वह फ़्लैट थोड़ा दूर है। जब मुझे समय मिलेगा, मैं जाकर बच्चन जी की वे किताबें उठा लाऊंगा, जो आप टंकित कर चुके हैं और एक-दो दिन लग कर सब पूरी तरह से देख डालूंगा। सादर --अनिल जनविजय १८:३०, ५ अक्तूबर २००९ (UTC)
प्रिय धर्मेन्द्र जी! आप ख़ूब काम कर रहे हैं। मैं दो दिन इस गली में न आया, और आपने दो दिन में ही झंडे गाड़ दिए। मेरी बधाई और शुभकामनाएँ। आप ऐसे ही सक्रिय रहें। मेरी यही इच्छा और कामना है कि आप कभी विश्राम न करें और हिन्दी के इस महायज्ञ में हमारा हाथ बँटाते रहें। सादर --अनिल जनविजय १३:३२, ७ अक्तूबर २००९ (UTC)
प्रिय धर्मेन्द्र जी! अगर किसी भी कवि की एक कविता या कुछ कविताएँ कई-कई संग्रहों में दुहराई जाती हैं तो आम तौर उस संग्रह का नाम लिखा जाता है, जिसमें वो सबसे पहले छपी थी या फिर जो संग्रह पहले प्रकाशित हुआ था। सादर --अनिल जनविजय १५:४९, ७ अक्तूबर २००९ (UTC)
निराला जी की 'अनामिका' पूरी होने पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें सच कहूँ तो आपको देख कर मैं भी लग कर एक किताब पर काम कर रही हूँ वरना मुझे भटकने की बहुत पुरानी आदत है कुछ किसी किताब से किसी शायर का तो कभी कोई दूसरी किताब हाथ लग गई तो किसी और शायर का कुछ जोड़ दिया आधा काम यहाँ तो आधा वहां और नतीजा कोई भी पूरा नहीं हाहाहा हा
पर अब लगता है कि अब आपके साथ काम करते करते मैं भी एक ही किताब पूरी टाइप करने के बाद ही दूसरी किताब शुरू करुँगी ऐसे ही लगन से आप आगे बढ़ते जाएँ यही प्रार्थना है
--Shrddha ०८:०३, १४ अक्टूबर २००९ (UTC)
सूरदास
प्रिय धर्मेन्द्र जी! जिस पन्ने पर सूरदास का पद लिखा हुआ है, उसी पन्ने पर उसका भावार्थ पद के साथ देना ही उचित है। यह ज़रूरी नहीं कि हर पाठक पद को तुरन्त समझ ही लेता है। पद पढ़ने के बाद या पद को पढ़ने के साथ-साथ वह पंक्ति-दर-पंक्ति उसका भावार्थ भी जानना चाहता है और ऐसा तभी सुविधाजनक होता है जब भावार्थ उसी पन्ने पर हो जिस पर पद है। अलग पन्ने पर भावार्थ ढूँढ़कर उसे पढ़ना पाठक के लिए एक कठिन प्रक्रिया होगी। उसे कुछ अतिरिक्त बटन दबाने होंगे, बार-बार आगे-पीछे भागना-दौड़ना होगा जो असुविधाजनक होगा। दूसरी बात यह है कि हम इस कोश को छात्रों और विद्यार्थियों के लिए तथा विदेशी पाठकों के लिए भी तैयार कर रहे हैं ताकि उनके लिए भी यह लाभप्रद रहे। उन्हें सुविधा एक ही जगह पर पद और भावार्थ मिल जाने में ही होगी। सादर --अनिल जनविजय १४:३८, १९ अक्टूबर २००९ (UTC)
एक रचना एक से अधिक संग्रहों में...
नमस्कार,
पिछले दिनों अमिताभ जी, श्रद्धा और धर्मेन्द्र कुमार को कविता कोश में रचनाएँ जोड़ते समय एक समस्या का सामना करना पड़ा था। यदि एक ही रचना किसी कवि के एक से अधिक संग्रहों में प्रकाशित हुई हो तो क्या उस रचना को हर संग्रह के लिये अलग-अलग टाइप करना चाहिये? इसका जवाब है "नहीं"...
आज मैनें KKRachna टैम्प्लेट के कोड में कुछ बदलाव किये हैं। इससे अब आप किसी भी रचना को एक से अधिक संग्रहों का हिस्सा बता सकते हैं। इसके लिये आपको संग्रहों के नामों को सेमी-कोलन (;) से अलग करना होगा। उदाहरण के लिये:
{{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=परिमल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" }}
इस उदाहरण में रचना को 2 संग्रहों (परिमल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" और अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला") का हिस्सा बताया गया है। ध्यान दीजिये कि दोनों संग्रहों के नाम सेमी-कोलन (;) से अलग किये गये हैं। इस तरह ज़रूरत पड़ने पर आप किसी रचना को कितने भी संग्रहों का हिस्सा बता सकते हैं।
इस सुविधा का प्रयोग होते हुए आप यहाँ देख सकते हैं: मित्र के प्रति / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
आशा है आपको यह सुविधा उपयोगी लगेगी।
सादर
--सम्यक २१:३५, १९ अक्टूबर २००९ (UTC)
सादर नमस्कार धर्मेन्द्र जी
एक और किताब पूरी होने पर बधाई स्वीकार करें आप तो इतने कम समय में मेरे ideal भी बन गए हैं, काम करने की गति , लगन , और लक्ष्य पर नज़र सभी गुण झलकते हैं मैं बहुत प्रभावित हूँ और खुद को बदलने के लिए बाध्य ..................................
अपने वार्ता पन्ने से पुरानी वार्ता जो अब अनुपयोगी हो उसे हटाने से नयी वार्ता में आसानी होती है .........
--Shrddha १३:००, २३ अक्टूबर २००९ (UTC)