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ते नर नरकरूप जीवत जग / तुलसीदास
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16:59, 26 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=तुलसीदास
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ते नर नरकरूप जीवत जग,
भव-भंजन पद बिमुख अभागी।
सठ, हठि पियत बिषय-बिष मॉंगी।
सूकर-स्वान-सृगाल-सरिस जन,
</poem>
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