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चाहत मुनि-मन-अगम सुकृति-फल, मनसा अघ न अघाति॥१॥ | चाहत मुनि-मन-अगम सुकृति-फल, मनसा अघ न अघाति॥१॥ | ||
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सेइ साधु गुरु, सुनि पुरान श्रुति बूझ्यों राग बाजी ताँति। | सेइ साधु गुरु, सुनि पुरान श्रुति बूझ्यों राग बाजी ताँति। | ||
तुलसी प्रभु सुभाउ सुरतरु सो ज्यों दरपन मुख काँति॥३॥ | तुलसी प्रभु सुभाउ सुरतरु सो ज्यों दरपन मुख काँति॥३॥ | ||
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22:46, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
मनोरथ मनको एकै भाँति।
चाहत मुनि-मन-अगम सुकृति-फल, मनसा अघ न अघाति॥१॥
करमभूमि कलि जनम कुसंगति, मति बिमोह मद माति।
करत कुजोग कोटि क्यों पैयत परमारथ पद साँति॥२॥
सेइ साधु गुरु, सुनि पुरान श्रुति बूझ्यों राग बाजी ताँति।
तुलसी प्रभु सुभाउ सुरतरु सो ज्यों दरपन मुख काँति॥३॥