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"देश-विभाजन-३ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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समस्त जाति की न काम दी अक़ल,
 
समस्त जाति की न काम दी अक़ल,
 
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फ़रक़ हमें दिखा न फूल-शूल में।
  
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पहन प्रसून हार हम खड़े हुए,
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कि खार मौत के गले पड़े हुए,
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कृतज्ञ हम ब्रिटेन के बड़े हुए,
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कि वह हमें गया ढकेल भूल में।
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यही स्वतंत्रता-लता गया लगा,
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कि मुल्क ओर-छोर खून से रंगा,
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बिखेर बीज फूट के हुआ अलग,
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स्वदेश सर्व काल को गया ठगा,
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गरल गया उलीच नीच मूल में।
 
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10:59, 30 अक्टूबर 2009 का अवतरण

विदेश की कुनीति हो गई सफल,
समस्त जाति की न काम दी अक़ल,
सकी न भाँप एक चाल, एक छल,
फ़रक़ हमें दिखा न फूल-शूल में।

पहन प्रसून हार हम खड़े हुए,
कि खार मौत के गले पड़े हुए,
कृतज्ञ हम ब्रिटेन के बड़े हुए,
कि वह हमें गया ढकेल भूल में।

यही स्वतंत्रता-लता गया लगा,
कि मुल्क ओर-छोर खून से रंगा,
बिखेर बीज फूट के हुआ अलग,
स्वदेश सर्व काल को गया ठगा,
गरल गया उलीच नीच मूल में।