कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रहीम]][[Category:कविताएँ]]}}
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।<br>
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।<br>
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥<br><br>
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।<br>
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब्ब॥19॥<br><br>
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।<br>
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥20॥<br><br>
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।<br>
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय॥21॥<br><br>
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।<br>
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥22॥कोय॥19॥<br><br>
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।<br>
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥23॥देर॥20॥<br><br>
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।<br>
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥24॥होय॥21॥<br><br>
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।<br>
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥25॥उपाय॥22॥<br><br>
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।<br>
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥26॥माहि॥23॥<br><br>
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।<br>
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥27॥विपरीत॥24॥<br><br>
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।<br>
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥28॥जाय॥25॥<br><br>
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।<br>
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥29॥चून॥26॥<br><br>
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।<br>
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥30॥रंग॥27॥<br><br>