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छिंगुनी / अजित कुमार

20 bytes added, 06:08, 1 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अजित कुमार
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मुट्ठी बांधने की असफल कोशिश
 
करते मरीज़ की छिंगुनी में
 
एक बार जब अचानक
 
ज़रा सी हरकत हुई...
 
तुम्हारा मुख-कमल खिल उठा
 
उत्साहित होकर तुम बोलीं-
 
लौटेगी ज़रूर, उंगलियों की ताक़त फिर लौटेगी।
 
लेकिन इस विडंबना से नियति की
 
तुम कहाँ तक लड़ सकती थीं कि
 
तनिक देर की उस जुंबिश के फिर से
 
लौटने का इंतज़ार बेहद लंबा होता गया।
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