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"दिन / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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नहीं कल-कूजन : महज़ बरतन खड़कते,
 
नहीं कल-कूजन : महज़ बरतन खड़कते,
 
 
टोस्ट-मक्खन-चाय के संग
 
टोस्ट-मक्खन-चाय के संग
 
 
सुबह बासी थी ।
 
सुबह बासी थी ।
 
 
जागने पर वही हर दिन की उदासी थी।
 
जागने पर वही हर दिन की उदासी थी।
 
  
 
आज भी दिन
 
आज भी दिन
 
 
रोज़ ही जैसा ।  
 
रोज़ ही जैसा ।  
 
 
वही पैडिल, वही सड़कें, दस बजे का शोर,
 
वही पैडिल, वही सड़कें, दस बजे का शोर,
 
 
वही आफ़िस, वही फ़ाइल, वही सबकुछ ‘बोर’,
 
वही आफ़िस, वही फ़ाइल, वही सबकुछ ‘बोर’,
 
 
वही बंसल, वही टड्न, बहस अखबारी,  
 
वही बंसल, वही टड्न, बहस अखबारी,  
 
 
अनकही लाचारियाँ, अनजान तैयारी ।
 
अनकही लाचारियाँ, अनजान तैयारी ।
 
  
 
आज का दिन्।–
 
आज का दिन्।–
 
 
सभी कुछ वैसा ।  
 
सभी कुछ वैसा ।  
 
 
बुझी आँखें, झुकी पलकें,
 
बुझी आँखें, झुकी पलकें,
 
 
झिझकते-से पैर,
 
झिझकते-से पैर,
 
 
राह घर की
 
राह घर की
 
 
विवश, भीड़भरी, अवांछित, गैर ।  
 
विवश, भीड़भरी, अवांछित, गैर ।  
 
 
:तभी सहसा
 
:तभी सहसा
 
 
:घरों और इमारतों के,
 
:घरों और इमारतों के,
 
 
:तरुदलों के,
 
:तरुदलों के,
 
 
:नील नभ के
 
:नील नभ के
 
 
:बन्धनों को काटकर उठता-
 
:बन्धनों को काटकर उठता-
 
 
:दिखा गोला चांद का, ज्यों दहकता शोला ।
 
:दिखा गोला चांद का, ज्यों दहकता शोला ।
 
 
:दूर छिटके कई तारे चिनगियों जैसे …   
 
:दूर छिटके कई तारे चिनगियों जैसे …   
 
 
थका-सहमा एक नन्हा-सा पखेरू
 
थका-सहमा एक नन्हा-सा पखेरू
 
 
उमगकर बोला-
 
उमगकर बोला-
 
 
कार्तिकी पूनो । कार्तिकी पूनो ।  
 
कार्तिकी पूनो । कार्तिकी पूनो ।  
 
 
आज के दिन,
 
आज के दिन,
 
 
हुआ यह कैसा ।
 
हुआ यह कैसा ।
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11:58, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

नहीं कल-कूजन : महज़ बरतन खड़कते,
टोस्ट-मक्खन-चाय के संग
सुबह बासी थी ।
जागने पर वही हर दिन की उदासी थी।

आज भी दिन
रोज़ ही जैसा ।
वही पैडिल, वही सड़कें, दस बजे का शोर,
वही आफ़िस, वही फ़ाइल, वही सबकुछ ‘बोर’,
वही बंसल, वही टड्न, बहस अखबारी,
अनकही लाचारियाँ, अनजान तैयारी ।

आज का दिन्।–
सभी कुछ वैसा ।
बुझी आँखें, झुकी पलकें,
झिझकते-से पैर,
राह घर की
विवश, भीड़भरी, अवांछित, गैर ।
तभी सहसा
घरों और इमारतों के,
तरुदलों के,
नील नभ के
बन्धनों को काटकर उठता-
दिखा गोला चांद का, ज्यों दहकता शोला ।
दूर छिटके कई तारे चिनगियों जैसे …
थका-सहमा एक नन्हा-सा पखेरू
उमगकर बोला-
कार्तिकी पूनो । कार्तिकी पूनो ।
आज के दिन,
हुआ यह कैसा ।