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"छूट गए / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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पथ ही नहीं, मित्र ।
 
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पथ के जितने भी थे सम्बल
 
पथ के जितने भी थे सम्बल
 
 
सब छूट गये ।
 
सब छूट गये ।
 
 
जैसे क्षण-दो-क्षण गाना
 
जैसे क्षण-दो-क्षण गाना
 
 
फूलों संग बातें करना,
 
फूलों संग बातें करना,
 
 
यों ही कुछ भूले-भूले रह
 
यों ही कुछ भूले-भूले रह
 
 
ख़ुद
 
ख़ुद
 
 
मन का ताप और क्लेश
 
मन का ताप और क्लेश
 
 
सब कुछ हरना ।
 
सब कुछ हरना ।
 
 
आँखों में मुसकाना,
 
आँखों में मुसकाना,
 
 
पैरों में गति के मृदु भाव
 
पैरों में गति के मृदु भाव
 
 
अपरिचित भरना  
 
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छूट गए, छूट गए,
 
छूट गए, छूट गए,
 
 
सपने सब
 
सपने सब
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12:00, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पथ ही नहीं, मित्र ।
पथ के जितने भी थे सम्बल
सब छूट गये ।
जैसे क्षण-दो-क्षण गाना
फूलों संग बातें करना,
यों ही कुछ भूले-भूले रह
ख़ुद
मन का ताप और क्लेश
सब कुछ हरना ।
आँखों में मुसकाना,
पैरों में गति के मृदु भाव
अपरिचित भरना
छूट गए, छूट गए,
सपने सब