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"सुबह की तस्वीरें-1 / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
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:: सुबह चिड़ियों के मधुर स्वर गूँजते हैं। | :: सुबह चिड़ियों के मधुर स्वर गूँजते हैं। | ||
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और पंडित जी नहा-धोकर, | और पंडित जी नहा-धोकर, | ||
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बड़े ही मग्न होकर | बड़े ही मग्न होकर | ||
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लगा आसन, भागवत-गीता उठाकर | लगा आसन, भागवत-गीता उठाकर | ||
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पाठ करते, कृष्ण-राधा की कथा गाते हुए | पाठ करते, कृष्ण-राधा की कथा गाते हुए | ||
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अति भक्ति-विहल जान पड़ते, | अति भक्ति-विहल जान पड़ते, | ||
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देवता आकाश के | देवता आकाश के | ||
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यह देखकर अभिमान से भरते | यह देखकर अभिमान से भरते | ||
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कि धरती के मनुज उनको अभी तक पूजते हैं, | कि धरती के मनुज उनको अभी तक पूजते हैं, | ||
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किन्तु बेचारे नहीं यह जान पाते- | किन्तु बेचारे नहीं यह जान पाते- | ||
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आज का इंसान ख़ुद को पूजता है, | आज का इंसान ख़ुद को पूजता है, | ||
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और जो सच्चे पुजारी | और जो सच्चे पुजारी | ||
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देवताओं के, प्रकृति के-- | देवताओं के, प्रकृति के-- | ||
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बड़े तड़के मधुर पावन स्वरों में, | बड़े तड़के मधुर पावन स्वरों में, | ||
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वनों में, पथ में, जगत भर में | वनों में, पथ में, जगत भर में | ||
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सुबह चिड़ियों के मधुर स्वर गूँजते है। | सुबह चिड़ियों के मधुर स्वर गूँजते है। | ||
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19:36, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सुबह चिड़ियों के मधुर स्वर गूँजते हैं।
और पंडित जी नहा-धोकर,
बड़े ही मग्न होकर
लगा आसन, भागवत-गीता उठाकर
पाठ करते, कृष्ण-राधा की कथा गाते हुए
अति भक्ति-विहल जान पड़ते,
और अपनी तान पर, लय पर
स्वयं ही ऊंघते हैं।
देवता आकाश के
यह देखकर अभिमान से भरते
कि धरती के मनुज उनको अभी तक पूजते हैं,
किन्तु बेचारे नहीं यह जान पाते-
आज का इंसान ख़ुद को पूजता है,
और जो सच्चे पुजारी
देवताओं के, प्रकृति के--
बच गये हैं:
वे वही हैं जो
बड़े तड़के मधुर पावन स्वरों में,
वनों में, पथ में, जगत भर में
विहग-दल कूजते हैं ।
सुबह चिड़ियों के मधुर स्वर गूँजते है।