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"काव्यानन्द / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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मूक रहने से तो बेहतर है यही
 
मूक रहने से तो बेहतर है यही
 
 
कुछ ज़ोर से गाओ कि
 
कुछ ज़ोर से गाओ कि
 
 
वे भी सुनें जो चारो तरफ़ घेरे खड़े हैं ।
 
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यह नहीं अच्छा कि मन का राग मन में ही
 
यह नहीं अच्छा कि मन का राग मन में ही
 
 
दफ़न रह जाय ।
 
दफ़न रह जाय ।
 
 
अंकुर दो उसे :
 
अंकुर दो उसे :
 
 
फूटे, उठे, ऊपर चढे,
 
फूटे, उठे, ऊपर चढे,
 
 
सब लोग छाया में खड़े हों और सुस्तायें,
 
सब लोग छाया में खड़े हों और सुस्तायें,
 
 
थकन मेटें :
 
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करें चर्चा प्रकृति की और
 
करें चर्चा प्रकृति की और
 
 
मानव की-  
 
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यही तो काव्य का आनन्द है ।
 
यही तो काव्य का आनन्द है ।
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20:43, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मूक रहने से तो बेहतर है यही
कुछ ज़ोर से गाओ कि
वे भी सुनें जो चारो तरफ़ घेरे खड़े हैं ।

यह नहीं अच्छा कि मन का राग मन में ही
दफ़न रह जाय ।
अंकुर दो उसे :
फूटे, उठे, ऊपर चढे,
सब लोग छाया में खड़े हों और सुस्तायें,
थकन मेटें :
करें चर्चा प्रकृति की और
मानव की-

यही तो काव्य का आनन्द है ।