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"क्वाँर की बयार / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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: इतराया यह और ज्वार का
 
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23:35, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

इतराया यह और ज्वार का
क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे--
शेफ़ाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन--
बगुलों की डार चली;
मन की सब अनकही रही--
पर मैं बात हार चली !