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सत्य तो बहुत मिले / अज्ञेय

117 bytes removed, 18:36, 1 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अज्ञेय
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खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले ।
खोज़ में जब निकल ही आया<br>कुछ नये कुछ पुराने मिले कुछ अपने कुछ बिराने मिले कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले सत्य तो बहुत कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले ।<br><br>
कुछ नये कुछ पुराने मिले<br>ने लुभाया कुछ अपने कुछ बिराने मिले<br>ने डराया कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले<br>ने परचाया- कुछ अकड़ू कुछ मुँहने भरमाया-चुराने मिले<br>कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश सत्य तो बहुत मिले<br>कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले खोज़ में जब निकल ही आया <br><br>
कुछ ने लुभाया<br>पड़े मिले कुछ ने डराया<br>खड़े मिले कुछ ने परचाया-<br>झड़े मिले कुछ ने भरमाया-<br>सड़े मिले कुछ निखरे कुछ बिखरे कुछ धुँधले कुछ सुथरे सब सत्य तो बहुत मिले<br>रहे खोज़ में जब निकल ही आया कहे, अनकहे <br><br>
कुछ पड़े मिले<br>खोज़ में जब निकल ही आया कुछ खड़े सत्य तो बहुत मिले<br>कुछ झड़े मिले<br>पर तुम कुछ सड़े मिले<br>नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम कुछ निखरे कुछ बिखरे<br>मोम के तुम, पत्थर के तुम कुछ धुँधले कुछ सुथरे<br>तुम किसी देवता से नहीं निकले: सब सत्य रहे<br>तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले कहे, अनकहे मेरे ही रक्त पर पले अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती मेरी अशमित चिता पर तुम मेरे ही साथ जले <br><br>
खोज़ में जब निकल ही आया<br>सत्य तो बहुत मिले<br>पर तुम<br>नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम<br>मोम के तुम, पत्थर के तुम<br>तुम्हें तो तुम किसी देवता से नहीं निकले:<br>भस्म हो तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू मैंने फिर अपनी भभूत में गले<br>पाया मेरे ही रक्त पर पले<br>अंग रमाया अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती<br>मेरी अशमित चिता पर<br>तुम मेरे ही साथ जले तभी तो पाया <br><br>
तुम-<br>तुम्हें तो<br>भस्म हो<br>मैंने फिर अपनी भभूत में पाया<br>अंग रमाया<br>तभी तो पाया ।<br><br> खोज़ में जब निकल ही आया,<br>सत्य तो बहुत मिले-<br>एक ही पाया । <br><br/poem>
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