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"पास और दूर / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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वे ही दयालु, वत्सल स्नेही तो 
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सब से क्रूर रहे। 
  
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वे ही तो सबसे दूर रहे :<br>
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ठुकरा कर हड्डी-पसली तोड़ गये  
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पर जो मिट्टी  
जिन सब ने उठ-उठ हाथ और झुक-झुक कर पैर गहे, <br>
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उन के पग रोष-भरे खूँदते रहे,  
वे ही दयालु, वत्सल स्नेही तो <br>
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सब से क्रूर रहे।<br><br>
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उसको वे ही एक अनजाने नयी खाद दे गाड़ गये :  
 
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उसमें ही वे एक अनोखा अंकुर रोप गये।  
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-जो चले गये, जो छोड़ गये,
ठुकरा कर हड्डी-पसली तोड़ गये<br>
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जो जड़े काट, मिट्टी उपाट,
पर जो मिट्टी<br>
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चुन-चुन कर डाल मरोड़ गये  
उन के पग रोष-भरे खूँदते रहे,<br>
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वे नहर खोद कर अनायास  
फिर अवहेला से रौंद गये :<br>
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सागर से सागर जोड़ गये
उसको वे ही एक अनजाने नयी खाद दे गाड़ गये :<br>
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मिटा गये अस्तित्व,
उसमें ही वे एक अनोखा अंकुर रोप गये।<br>
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किन्तु वे
-जो चले गये, जो छोड़ गये, <br>
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जीवन मुझको सौंप गये।
जो जड़े काट, मिट्टी उपाट, <br>
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चुन-चुन कर डाल मरोड़ गये<br>
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वे नहर खोद कर अनायास<br>
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सागर से सागर जोड़ गये <br>
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मिटा गये अस्तित्व, <br>
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किन्तु वे <br>
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जीवन मुझको सौंप गये।<br><br>
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00:39, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

जो पास रहे
वे ही तो सबसे दूर रहे :
प्यार से बार-बार
जिन सब ने उठ-उठ हाथ और झुक-झुक कर पैर गहे,
वे ही दयालु, वत्सल स्नेही तो
सब से क्रूर रहे।

जो चले गये
ठुकरा कर हड्डी-पसली तोड़ गये
पर जो मिट्टी
उन के पग रोष-भरे खूँदते रहे,
फिर अवहेला से रौंद गये :
उसको वे ही एक अनजाने नयी खाद दे गाड़ गये :
उसमें ही वे एक अनोखा अंकुर रोप गये।
-जो चले गये, जो छोड़ गये,
जो जड़े काट, मिट्टी उपाट,
चुन-चुन कर डाल मरोड़ गये
वे नहर खोद कर अनायास
सागर से सागर जोड़ गये
मिटा गये अस्तित्व,
किन्तु वे
जीवन मुझको सौंप गये।