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− | अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी॥ हरिजू .. | + | अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी॥ हरिजू .. |
− | कच्छप अध आसन अनूप अति, डांडी सहस फनी। | + | कच्छप अध आसन अनूप अति, डांडी सहस फनी। |
− | महि सराव, सप्त सागर घृत-बाती सैल घनी। हरिजू .. | + | महि सराव, सप्त सागर घृत-बाती सैल घनी। हरिजू .. |
− | रवि-शशि ज्योति जगत परिपूरन, हरति तिमिर रजनी। | + | रवि-शशि ज्योति जगत परिपूरन, हरति तिमिर रजनी। |
− | उड़त फुल उड्डन नभ अन्तर, अंजन घटा घनी॥ हरिजू .. | + | उड़त फुल उड्डन नभ अन्तर, अंजन घटा घनी॥ हरिजू .. |
− | नारदादि, सनकादि प्रजापति, सुर-नर-असुर अनी। | + | नारदादि, सनकादि प्रजापति, सुर-नर-असुर अनी। |
− | काल-कर्म-गुनओर-अंत नहिं, प्रभु-इच्छा रजनी॥ हरिजू .. | + | काल-कर्म-गुनओर-अंत नहिं, प्रभु-इच्छा रजनी॥ हरिजू .. |
− | यह प्रताप दीपक सुनिरंतर, लोक सकल भजनी। | + | यह प्रताप दीपक सुनिरंतर, लोक सकल भजनी। |
सूरदास सब प्रकट ध्यान में अति विचित्र सजनी॥ | सूरदास सब प्रकट ध्यान में अति विचित्र सजनी॥ | ||
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20:31, 3 नवम्बर 2009 का अवतरण
हरिजू की आरती बनी।
अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी॥ हरिजू ..
कच्छप अध आसन अनूप अति, डांडी सहस फनी।
महि सराव, सप्त सागर घृत-बाती सैल घनी। हरिजू ..
रवि-शशि ज्योति जगत परिपूरन, हरति तिमिर रजनी।
उड़त फुल उड्डन नभ अन्तर, अंजन घटा घनी॥ हरिजू ..
नारदादि, सनकादि प्रजापति, सुर-नर-असुर अनी।
काल-कर्म-गुनओर-अंत नहिं, प्रभु-इच्छा रजनी॥ हरिजू ..
यह प्रताप दीपक सुनिरंतर, लोक सकल भजनी।
सूरदास सब प्रकट ध्यान में अति विचित्र सजनी॥