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फ़ोकिस में ओदिपौस / अज्ञेय

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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
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{{KKCatKavita}}<poem>राही, चौराहों पर बचना! <br> राहें यहाँ मिली हैं, बढ़ कर अलग-अलग हो जाएँगी <br> जिस को जो मंज़िल हो आगे-पीछे पाएँगी <br> पर इन चौराहों पर औचक एक झुटपुटे में <br> अनपहचाने पितर कभी मिल जाते हैं: <br> उन की ललकारों से आदिम रूद्र-भाव जग आते हैं, <br> कभी पुरानी सन्धि-वाणियाँ <br> और पुराने मानस की धुंधली घाटी की अन्ध गुफा को <br> एकाएक गुंजा जाती हैं; <br> काली आदिम सत्ताएँ नागिन-सी <br> कुचले शीश उठाती हैं— <br> राही <br> शापों की गुंजलक में बंध जाता है: <br> फिर <br> जिस पाप-कर्म से वह आजीवन भागा था, <br> वह एकाएक <br> अनिच्छुक हाथों से सध जाता है। <br> <br>
राही चौराहों से बचना! <br> वहाँ ठूँठ पेड़ों की ओट <br> घात बैठी रहती हैं <br> जीर्ण रूढ़ियाँ <br> हवा में मंडराते संचित अनिष्ट, उन्माद, भ्रान्तियाँ— <br> जो सब, जो सब <br> राही के पद-रव से ही बल पा, <br> सहसा कस आती हैं <br> बिछे, तने, झूले फन्दों-सी बेपनाह! <br> राही, चौराहों पर <br> बचना। <br> <br> <br>
<span style="font-size:14px">देल्फ़ी, ग्रीस]</span>
</poem>
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