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"जीवन / अनंत कुमार पाषाण" के अवतरणों में अंतर

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लेकिन इससे डरकर
 
लेकिन इससे डरकर

00:20, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

छोडो भी, ऐसा तो जीवन में होता है,
जो कभी मिलता है, वह कभी छिनता है।
लेकिन इससे डरकर
संध्या के सिंदूरी प्रकाश में
मंजरित तुलसी के
नीचे दीया
जलाना थोडे ही बंद किया जाता है।
भगवान बात सुनें, न सुनें,
तो भी मंदिर तो मंदिर ही है,
उसमें जो रोज शाम दीया नहीं जलाता है,
वह तो घर लौटने के अपने ही मार्ग पर
अंधेरा फैलाता है।