भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फागुनी दोहे / अनूप अशेष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
 
आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
 
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।
 
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।
 +
</poem>

21:52, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

घेर रही है दिन उगे, अलसायी-सी बाँह।
जैसे आई धूप हो, गुलमोहर की छाँह।।

ओंठों लाली पान की, सांसों केसर रंग।
बेल पत्र पर हैं लिखे, भीतर के अनुबंध।।

पिया हाथ अंजुरी जुड़ी, ज्यों केवड़े का फूल।
भाग जुड़े दिन मोह के, पग पग महकी धूल।।

कनुप्रिया की गोद में, कालिंदी तट धूप।
सरसों मल कर आएगा, श्याम रंग में भूप।।

आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।